क्यों इंद्र की सबसे सुंदर अप्सरा ने अर्जुन को दिया नपुंसक होने का शाप, घबराए धनुर्धर ने क्या किया
इंद्र की सबसे खूबसूरत अप्सरा उर्वशी महान धर्नुधर अर्जुन पर मुग्ध हो गईं थीं. उनकी नजरें उन पर जब टिकने लगीं तो इंद्र के दरबार के लोगों ने भी इसे ताड़ लिया था. एक दिन उर्वशी सजसंवरकर अर्जुन के पास पहुंची और वहां पर ऐसा क्या हुआ कि वह क्रोध से आपा खो बैठीं. उन्होंने इस गुस्से में जो श्राप दिया उसे तो अर्जुन खुद सकते में आ गए. उन्हें नपुंसक के तौर पर कुछ समय भी गुजारना पड़ा.
पांडवों को द्युत क्रीड़ा में हारने के बाद 13 साल का वनवास और एक साल का अज्ञातवास मिल चुका था. पांडव वन में रह रहे थे. उन्हें भी अंदाज था कि जब वह वनवास पूरा करके हस्तिनापुर लौटेंगे तो कौरवों से उनका युद्ध होगा. इसके लिए सभी पांडव भाई अपने अपने तरीके से तैयार हो रहे थे. युधिष्ठिर ने अर्जुन से कहा कि उन्हें इंद्र को प्रसन्न करके उनसे सभी अस्त्र शस्त्र हासिल करने चाहिए.
अर्जुन को लेने इंद्र का रथ आया
इस क्रम में अर्जुन ने तपस्या की. उन्होंने भगवान शिव और इंद्र दोनों को खुश किया. इसके बाद इंद्र का रथ उन्हें धरती से इंद्रलोक के लिए लेने आया. इंद्र अमरावती में रहते थे. वहीं पर उनका दरबार सजता था. मेनका, रंभा, उर्वशी जैसी अप्सराएं मनोहारी नृत्य करती थीं. अर्जुन को वहां रहने के लिए इंद्र ने अलग महल दिया. वहां अर्जुन को पांच सालों तक रहना था.
उर्वशी से कहा गया कि अर्जुन उन पर मोहित हैं
वहां अर्जुन रहकर अस्त्र शस्त्र की विशेष शिक्षा लेने लगे तो इंद्र के आदेश पर गंधर्व औऱ चित्रसेन से नृत्य, गीत और वाद्य भी सीखने लगे. एक दिन चित्रसेन अप्सरा उर्वशी पर जाकर बोले, ऐसा लग रहा है कि अर्जुन तुम्हारे प्रति मोहित हैं. अक्सर तुम्हें देखते रहते हैं. जहां तुम होती हो, उनकी निगाह भी उसी ओर रहती है. ऐसा लगता है कि तुम उनके दिल में उतर गई हो. तुम्हें उनसे मिलना चाहिए.
उर्वशी खुद अर्जुन से प्यार करने लगी थीं
ये सुनते ही उर्वशी खुश हो गई, क्योंकि वह खुद मन ही मन अर्जुन को प्यार करने लगी थी. जब चित्रसेन ने ये बात कही तो उसे लगा कि अब उसे अर्जुन से मिलकर प्रेमालाप करने का समय आ गया है. मन ही सोचा कि मैं आज ही सजधजकर अर्जुन के पास जाऊंगी.
उर्वशी सजधज कर पहुंचीं
शाम के समय जब रात सुहानी थी, तब उर्वशी ने खास श्रृंगार किया और अर्जुन के महल की ओर चल पड़ी. आज उसकी चाल में बला की लय थी. वह आकर्षक लग रही थी. उसने जब द्वारपाल से कहा कि अर्जुन से जाकर बता दे कि उर्वशी आई है तो अर्जुन शंकित हो उठे कि आज ना जाने क्या होने वाला है.
मैं आपके प्रति आकर्षित हूं
उन्होंने अभिवादन किया. पूछा – आप यहां कैसे आईं, क्या आज्ञा है. उर्वशी ने कहा – अर्जुन जब आपके स्वागत में इंद्र ने खास आनंदोत्सव का आयोजन किया तो आप मुग्ध नजरों से मुझको ही देख रहे थे. ये बात सबने नोटिस की. मैने भी महसूस किया. आयोजन के खत्म होने पर इंद्र ने चित्रसेन के जरिए मुझसे कहा कि मुझको आपके पास जाना चाहिए. मैं आपके प्रति आकर्षित हूं.
अर्जुन का क्या जवाब था
अर्जुन ये सुनते ही चौंक गए. उन्होंने कहा, उर्वशी आपको ये बातें नहीं करना चाहिए. आप मेरी गुरु पत्नी तुल्य हैं. आप तो पुरु वंश की जननी हैं. लिहाजा आप तो मेरे लिए सम्मानीय हैं, और आपको उस नजर से देख ही नहीं सकता.
उर्वशी चाहती थीं कि अर्जुन के साथ मिलन करें
उर्वशी ने इस पर भी अर्जुन के प्रति अपना प्यार उड़ेलते हुए कहा, अप्सराएं किसी नियम के अधीन नहीं होतीं पुरु वंश के पुत्र और पौत्र में जो भी स्वर्ग आता है, वो हमारे साथ मिलन करता है. तुम मेरी इच्छा पूरी करो.
क्रोध से कांपने लगी इंद्र की अप्सरा
अर्जुन ने फिर उर्वशी को निराश करते हुए कहा, आप मेरे लिए मां की तरह पूज्यनीय हैं और मैं आपके पुत्र समान हूं. ये सुनते ही उर्वशी क्रोध से कांपने लगी . उसने कहा, मैं तो बहुत उम्मीद से इंद्र और मित्रसेन के कहने पर तुम्हारे पास आई थी. तुमने मेरा आदर नहीं किया. अब तुम सम्मानहीन नपुंसक होकर स्त्रियों के बीच ही रहोगे. ये कहकर उर्वशी नाराज होकर वहां से चली गई.
तब इस शाप का क्या हुआ
जब इंद्र को ये बात पता लगी तो उन्होंने इंद्र से कहा, ये शाप भी तुम्हारे काम आएगा. अज्ञातवास के दौरान तुम एक वर्ष तक नपुंसक बनकर रहोगे. इसके बाद फिर तुम्हें पुरुषत्व मिल जाएगा.
कौन थीं अप्सरा उर्वशी, कैसे पैदा हुईं
अब आइए उर्वशी के बारे में जानते हैं. वह रामायण और महाभारत दोनों काल में उल्लेख में आने वाली प्रमुख अप्सरा थीं. उन्हें सभी अप्सराओं में सबसे सुंदर और एक कुशल नर्तकी माना जाता था. वह देवताओं के राजा और स्वर्ग के शासक इंद्र के दरबार में एक विशेष स्थान रखती थीं. उनकी पौराणिक चंद्रवंश के पहले राजा पुरुरवा के साथ हुई थी, जिसे उन्होंने बाद में त्याग दिया था.
धर्मग्रंथ देवी भागवत पुराण के अनुसार, अप्सरा को उर्वशी के रूप में जाना जाता है क्योंकि वह दिव्य-ऋषि नारायण की उरु यानि जांघ से पैदा हुईं थीं. उर्वशी ऋग्वेद में विशेष रूप से नामित अप्सरा है, जो सबसे पुराना ज्ञात हिंदू धर्मग्रंथ है, जिसकी रचना लगभग 1900-1200 ईसा पूर्व हुई थी. उर्वशी को वशिष्ठ और अगस्त्य ऋषि के जन्म में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला भी कहा जाता है. उन्हें कभी-कभी उनकी माँ भी कहा जाता है.
अर्जुन की कितनी पत्नियां थीं
अब आइए अर्जुन के बारे में भी जान लेते हैं कि उनकी कितनी पत्नियां थीं. उनकी चार पत्नियां थीं, जिसमें द्रौपदी सभी पांडवों की पत्नी थीं. उनकी अन्य पत्नियों में उलूपी, चित्रांगदा और सुभद्रा शामिल हैं. सुभद्रा कृष्ण की बहन थीं, जिसे अर्जुन रथ से अपहरण करके लाए थे.