बिहार में बड़े खेल की आहट, बढ़ सकती हैं तेजस्वी की मुश्किलें; 2 बाहुबलियों पर टिकी निगाहें…
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भारतीय जनता पार्टी को विधानसभा में 12 फरवरी को अपना बहुमत साबित करना है।
सीएम खुद और उनकी पार्टी इसको लेकर आश्वस्त है। इसका सबसे बड़ा कारण संख्याबल है।
बिहार में जेडीयू के पास 45 और बीजेपी के पास 78 विधायक हैं। दोनों दलों को मिलाकर संख्या 123 हो जाती है, जो कि बहुमत से एक अधिक है।
वहीं, जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाले हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा के चार विधायकों और एक निर्दलीय विधायक का समर्थन भी नीतीश कुमार की नई सरकार को प्राप्त है।
कुल मिलाकर उनके पास 128 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। इसके बावजूद आरजेडी और कांग्रेस को हॉर्स ट्रेडिंग का डर सता रहा है।
कांग्रेस ने अपने विधायकों को बहुत पहले हैदराबाद शिफ्ट कर दिया था। वहीं, अब तेजस्वी यादव ने भी अपने सभी विधायकों को अपने ही आवास पर नजरबंद कर दिया है। उन्हें अपनी पार्टी पर टूट का खतरा मंडराता नजर आ रहा है।
बिहार के सियासी गलियारों में भी इस बात की चर्चा है। राजनीतिक जानकार बतात हैं कि आरजेडी और कांग्रेस अपने विधायकों को फ्लोर टेस्ट नहीं, बल्कि राज्यसभा चुनाव के कारण नजरबंद कर रही है।
उन्हें डर है कि क्रॉस वोटिंग नहीं कर दें और दूसरी वरीयता वाले वोट में एनडीए के चौथे उम्मीदवार को जिताने में मदद नहीं कर दें।
इन 2 बाहुबलियों पर नजर
बिहार की राजनीति में इन दिनों दो बाहुबलियों पर सबकी निगाहें जा टिकी हैं। पहला नाम है आनंद मोहन, जिन्हें हाल ही में जेल से रिहाई मिली है।
उनकी रिहाई के लिए नीतीश कुमार की सरकार ने कानून में संसोधन कर दिया था। जेल से निकलने के बाद कई मौके पर दोनों नेताओं की आपस में मुलाकात भी हो चुकी है।
वहीं, लालू प्रसाद यादव ने अभी तक उन्हें मिलने का समय तक नहीं दिया है। आपको बता दें कि आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद लालू यादव की पार्टी राजद के विधायक हैं।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आनंद मोहन की रिहाई पर एक हलफनामा दायर करने के लिए कहा है। ऐसे में इस बात की संभावना है कि उनके बेटे दबाव में अपना मन एनडीए के लिए बना सकते हैं।
छोटे सरकार भी सभी की नजर
बिहार में जब 28 जनवरी को नई सरकार का गठन हुआ तो अनंत सिंह के आवास पर जमकर आतिशबाजी हुई है। आपको बता दें कि उनकी पत्नी राजद के सिंबल पर उपचुनाव में विधायक चुनी गई थी।
अनंत सिंह खुद पहले जेडीयू में ही थे। जेडीयू और मुंगेर संसदीय क्षेत्र में ललन सिंह की बढ़ती ताकत के कारण वह जेडीयू से अलग हो गए।
बाद में उन्हें जेल तक जाना पड़ा। अपराध साबित होने पर उन्हें अपनी विधायकी गवानी पड़ गई। वहीं, ललन सिंह बिहार में जेडीयू-आरजेडी की दोस्ती के पैरोकार माने जाते थे।
जब दोनों दलों की दोस्ती खत्म हुई तो अनंत सिंह के आवास पर इसका जश्न मनाया गया। अब उनकी पत्नी के वोट पर भी एनडीए की निगाहें जा टिकी हैं।