भारत के UP जैसी अहमियत क्यों रखता है पाकिस्तान के चुनाव में पंजाब…
24 करोड़ आबादी वाले पड़ोसी देश पाकिस्तान में आज वोट डाले जा रहे हैं।
लगातार चौथी बार लोग वहां नेशनल असेंबली के लिए मतदान कर रहे हैं। इस बीच, मुस्लिम बहुल देश अभूतपूर्व दौर से गुजर रहा है, जहां क्रोध, निराशा और आशा की नई किरण दिखाई दे रही है।
इस देश के लिए यह हैरत की बात है कि आजादी के 76 साल बाद आज तक एक भी प्रधानमंत्री ने पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया है।
वहां अक्सर सैन्य शासन रहा है और लोकतंत्र की बहाली की स्थिति में भी सैन्य शासन का प्रभुत्व रहा है। 1956 से 1971, 1977 से 1988 तक और फिर 1999 से 2008 तक पाकिस्तान सैन्य शासन के अधीन रहा है।
इस बार का चुनाव भी कथित सैन्य हस्तक्षेप के साये में ही हो रहा है। इस बार का चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि एक पूर्व प्रधानमंत्री सलाखों के पीछे बंद है, तो दूसरा स्व निर्वासन से बाहर निकलकर चौथी बार प्रधानमंत्री बनने के लिए चुनावी अखाड़े में ताल ठोक रहा है।
इतना ही नहीं इस पूर्व प्रधानमंत्री यानी नवाज शरीफ की चुनावों से ठीक पहले आपराधिक दोषसिद्धि दूर कर दी गई है।
पंजाब प्रांत अहम क्यों?
पाकिस्तान की संसद के निचले सदन नेशनल असेंबली में कुल 342 सीटें हैं। इनमें से 272 सांसद चार प्रदेशों से चुनकर आते हैं, जबकि 60 सीट महिलाओं के लिए और 10 सीटें धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित हैं।
पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और खैर पख्तुनख्वा पाकिस्तान के चार प्रांत हैं। इनमें पंजाब को सत्ता का द्वार कहा जाता है, जैसा कि भारत में उत्तर प्रदेश को कहा जाता है क्योंकि वहां नेशनल असेंबली की सबसे ज्यादा 141 सीटें हैं। 2018 के चुनाव में इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) ने यहां से कुल 67 सीटें जीती थीं और इस्लामाबाद में सरकार बनाई थी।
दूसरी तरफ नवाज शरीफ की पार्टी PML-N को 2018 में यहां कुल 64 सीटें मिली थीं। इस बार पंजाब समेत पूरे पाकिस्तान में इमरान खान की पार्टी संकट का सामना कर रही है।
उनके कई नेता निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं जबकि इमरान खान समेत पीटीआई के कई बड़े जेल में बंद हैं। इन वजहों से नवाज शरीफ की पार्टी के नेता सियासी अखाड़े में बढ़त बनाए हुए हैं।
खुद नवाज शरीफ भी लाहौर की नेशनल असेंबली सीट-130 से चुनाव लड़ रहे हैं। इसलिए यहां पीएमएलएन हावी दिख रहा है।
ऐसा माना जाता रहा है कि पाकिस्तान में पंजाब प्रांत में जिस पार्टी का असर ज्यादा होता है और जो ज्यादा सीटें जीतती है, उसी की केंद्र में सरकार बनती है।
बिलावल भुट्टो की पार्टी पीपीपी की स्थिति पंजाब में अच्छी नहीं है। हालांकि वह पंजाब की एक सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।
अन्य प्रांतों में क्या सूरत-ए-हाल?
दूसरा अहम प्रांत सिंध है, जहां कुल 61 सीटें हैं। यह पीपीपी का गढ़ माना जाता है। यहां अभी भी पीपीपी की प्रांतीय सरकार है। पीएमएल-एन भी यहां अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहा है।
नवाज शरीफ की पार्टी यहां मुताहिदा कौमी मूवमेंट के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है। इनके अलावा खैबर पख्तुन्ख्वा में नेशनल असेंबली की 45 और बलूचिस्तान में 16 सीटें हैं।