कौन हैं बृज नारायण चकबस्त, जिन्होंने उर्दू में बयां किया है रामायण का एक सीन; राम, दशरथ और कौशल्या के भावुक संवाद…
अयोध्या के राम मंदिर में सोमवार 22 जनवरी को राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा होनी है।
इससे पूर्व राम और उनसे तमाम चीजों पर चर्चा हो रही है। इन सबके बीच याद आते हैं एक ऐसे कवि जिनका परिवार कश्मीरी ब्राह्मण था और उनका जन्म हुआ था फैजाबाद में।
इस शख्सियत का नाम था बृज नारायण चकबस्त। चकबस्त का जन्म 19 जनवरी 1882 को फैजाबाद में हुआ था।
वह उर्दू में गजलें और देशभक्ति गीत लिखा करते थे। लेकिन भगवान राम के ऊपर उर्दू में उनके लिखे ने उन्हें खासी मशहूरी दिलाई।
खासतौर पर रामायण का एक सीन, जिसमें उन्होंने भगवान राम के वन गमन और इस दौरान राम, दशरथ और कौशल्या के बीच संवाद का दृश्य रचा है, वह बेहद मार्मिक है।
पिता दशरथ के पास कैसे पहुंचे राम
रामायण का एक सीन में बृज नारायण चकबस्त ने उस वक्त का वर्णन किया है, जब भगवान राम वनवास के लिए निकल रहे हैं।
इसकी पहली लाइन है, ‘‘रुख़्सत हुआ वो बाप से ले कर ख़ुदा का नाम, राह-ए-वफ़ा की मंज़िल-ए-अव्वल हुई तमाम’’। यहां पर भगवान राम वनगमन से पूर्व अपने पिता से मिलने के लिए पहुंचे हुए हैं।
वह कहते हैं कि हे पिता आपके वचन की लाज रखने के लिए मैं अयोध्या छोड़कर जा रहा हूं। आलम यह है कि भगवान राम अपने पिता के पास बहुत देर तक रुकना भी नहीं चाहते।
इसकी वजह बताते हुए कवि ने लिखा है, “इजहार-ए-बे-कसी से सितम होगा और भी, देखा हमें उदास तो गम होगा और भी”।
कौशल्या-राम संवाद
इसके बाद भगवान राम अपनी मां कौशल्या के पास पहुंचते हैं। चकबस्त ने इस दृश्य का भी बड़ा ही भावपूर्ण वर्णन किया है। यहां पर मां कौशल्या का जो हाल है वह बयां किया गया है।
चकबस्त ने लिखा है इसका वर्णन कुछ यूं किया है, “खामोश मां के पास गया सूरत-ए-खयाल, देखा तो एक दर में है बैठी वो खस्ता-हाल”।
आगे कौशल्या अपना हाल खुद कहती हैं। वह कहती जानती हैं कि भगवान राम उनके पास वन जाने की आज्ञा मांगने आए हैं। वह राम से कहती हैं, “सब की खुशी यही है तो सहरा को हो रवां, लेकिन मैं अपने मुंह से न हरगिज कहूंगी हां।
किस तरह बन में आंखों के तारे को भेज हूं, जोगी बना के राज-दुलारे को भेज दूं।
पेशे से वकील, लेकिन शायरी में निपुण
पंडित बृजनारायण पढ़े लिखे परिवार से ताल्लुक रखते थे। उन्होंने उर्दू और फारसी की पढ़ाई तो की ही थी, साथ ही अंग्रेजी भी पढ़ी थी।
साल 1905 में केनिंग कॉलेज लखनऊ से उन्होंने बीए पास किया और वहीं से वकालत करने के बाद इस पेशे में आए गए। दूसरी तरफ शायरी का शौक भी उन्हें कम नहीं था।
बताते हैं जब बृज नारायण मात्र नौ साल के थे, तभी उन्होंने पहली गजल कही थी। उनकी मौत बेहद कम उम्र में हो गई थी। 12 फरवरी 1926 को महज 44 साल की उम्र में ब्रेन हैमरेज के चलते उनकी जान चली गई।