चेक अदालत से निखिल गुप्ता को बड़ा झटका, US प्रत्यर्पण की मंजूरी; इस मंत्री पर टिकी उम्मीदें…
खालिस्तानी आतंकवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार भारतीय नागरिक निखिल गुप्ता को चेक रिपब्लिक की अदालत से बड़ा झटका लगा है।
कोर्ट ने शुक्रवार को अपने फैसले में कहा कि चेक रिपब्लिक सरकार चाहे तो अमेरिकी धरती पर सिख अलगाववादी को मारने की असफल साजिश में शामिल होने के आरोपी भारतीय व्यक्ति को अमेरिका के हवाले कर सकता है।
चेक के न्याय मंत्रालय ने यह जानकारी दी। निखिल गुप्ता की सारी उम्मीदें अब चेक सरकार के न्याय मंत्री पावेल ब्लेजेक के ऊपर टिकी हैं।
दरअसल मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने बताया कि 52 वर्षीय आरोपी निखिल गुप्ता के प्रत्यर्पण पर अंतिम निर्णय न्याय मंत्री पावेल ब्लेजेक के हाथों में होगा।
निखिल गुप्ता पर अमेरिकी सरकार के वकीलों ने पिछले साल नवंबर में एक मुकदमा दायर किया था।
इसमें खालिस्तानी अलगाववादी गुरपतवंत सिंह पन्नू को अमेरिका की जमीन पर मारने की नाकाम साजिश में एक भारतीय सरकारी कर्मचारी के साथ मिलकर काम करने का आरोप लगाया था।
पन्नू के पास अमेरिका और कनाडा की दोहरी नागरिकता है। इन आरापों के तहत निखिल गुप्ता को 30 जून, 2023 को चेक रिपब्लिक के प्राग में गिरफ्तार किया गया था और इस समय उसे वहीं रखा गया है।
अमेरिकी सरकार उसके प्रत्यर्पण की मांग कर रही है।
अब चेक की अदालत ने निखिल के अमेरिका प्रत्यर्पण का रास्ता साफ कर दिया है। देखना है कि मंत्रालय का क्या फैसला रहता है।
न्याय मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि इस मामले में मंत्री कब तक फैसला लेते हैं इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस बीच निखिल गुप्ता अपने प्रत्यर्पण को रोकने के लिए हर संभव कदम उठाएंगे।
निखिल के पास चेक रिपब्लिक की शीर्ष अदालत में जाने का भी विकल्प खुला है। प्रवक्ता ने कहा कि अगर उनको निचली अदालत के फैसलों पर संदेह है तो उनके पास सुप्रीम कोर्ट का रुख करने के लिए तीन महीने का समय है।
बता दें कि गुप्ता को 30 जून, 2023 को चेक गणराज्य के प्राग में गिरफ्तार किया गया था और इस समय उसे वहीं रखा गया है। उनके परिवार ने एकान्त कारावास में गंभीर मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है, जिसमें गोमांस और सूअर का मांस खाने के लिए मजबूर किया जाना भी शामिल है।
यह भी आरोप लगाया गया है कि उन्हें ‘कांसुलर एक्सेस’ के तहत भारत में अपने परिवार से संपर्क करने के अधिकार और कानूनी मदद लेने की स्वतंत्रता से वंचित कर दिया गया।
इस बीच आरोपों की जांच के लिए भारत पहले ही एक जांच समिति गठित कर चुका है।